ज़मीन बेच के तारे बसाना चाहते हैं ये कौन लोग ख़लाओं में जाना चाहते हैं कभी वो शे'र कहा करता था हमारे लिए हम उस के शे'र उसी को सुनाना चाहते हैं वो चाहे झूट में इक़रार तो करे इक बार हम उस के झूट पे ईमान लाना चाहते हैं हम उस की आँख में रह कर भी आँसुओं में रहे जिसे हम अपनी रगों में समाना चाहते हैं हमें ख़बर है ये दुनिया तबाह कर देंगे हम ऐसे लोगों का शजरा बताना चाहते हैं ये दोस्त दोस्त नहीं हैं ये दिल के काले लोग मुनाफ़िक़ीन हमें आज़माना चाहते हैं हमारे नाम पे साँसों को थामने वाले हमारे ख़्वाब भी 'बुशरा' भुलाना चाहते हैं