ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा मताअ-ए-ख़्वाब ब-जुज़ कुछ यहाँ नहीं मेरा ये ऊँट और किसी के हैं दश्त मेरा है सवार मेरे नहीं सार-बाँ नहीं मेरा मुझे तुम्हारे तयक़्क़ुन से ख़ौफ़ आता है कि इस यक़ीन में शामिल गुमाँ नहीं मेरा मैं हो गया हूँ ख़ुद अपने सफ़र से बेगाना कि नींद मेरी है ख़्वाब-ए-रवाँ नहीं मेरा तो आब ओ ख़ाक से बच कर किधर को जाता मैं दवाम-ए-वस्ल है बाक़ी निशाँ नहीं मेरा फिर एक दिन उसी मिट्टी को लौट जाऊँगा गुरेज़ तुझ से रह-ए-रफ़्तगाँ नहीं मेरा सदा-ए-शहर-ए-गुज़िश्ता अभी बुलाती है गो अब अज़ीज़ कोई भी वहाँ नहीं मेरा