ये यक़ीं ये गुमाँ ही मुमकिन है तुझ से मिलना यहाँ ही मुमकिन है ख़्वाब इक मुमकिन ओ मयस्सर का गरचे उस का बयाँ ही मुमकिन है बेहद ओ बे-हिसाब शौक़ में भी क़स्द कू-ए-बुताँ ही मुमकिन है तंगना-ए-जहाँ-ए-ज़ाहिर में ये ज़मीं ये ज़माँ ही मुमकिन है हद से हद इस रह-ए-हज़ीमत में पुर्सिश-रह-रवाँ ही मुमकिन है आतिश-ए-दिल पे डालने के लिए रेग-ए-राह-ए-रवाँ ही मुमकिन है सरहद-ए-मुम्किनात से आगे सर पे इक आसमाँ ही मुमकिन है आन बैठे कि जी लगाने को सोहबत-ए-दोस्ताँ ही मुमकिन है अर्सा-ए-ज़िंदगी में तेरी मिरी सिर्फ़ इक दास्ताँ ही मुमकिन है क्या तमाशा है याँ उठाने को एक बार-ए-गिराँ ही मुमकिन है