ज़मीं पे रह के सितारा सा हो गया था मैं मुझे ख़बर है तुम्हारा सा हो गया था मैं बला-ए-जाँ थी मगर कितना फूट कर रोई नदी के बीच किनारा सा हो गया था मैं किसी ने मेरी मतानत का जब सबब पूछा बस एक पल में बेचारा सा हो गया था मैं बदन को रूह ने हमवार कर लिया लेकिन उसे जो देखा कँवारा सा हो गया था मैं मैं नेक-नाम न रुस्वा मगर सर-ए-महफ़िल ये और बात गवारा सा हो गया था मैं बहुत ख़िलाफ़ थी आँखें बहुत उदास था दिन ख़ुद अपने घर में नज़ारा सा हो गया था मैं