सज्दे में रहे क्यूँ कोई बंदा मिरे आगे जो है मिरे पीछे वही होता मिरे आगे लगता है कि छोड़ आया हूँ मंज़िल कहीं पीछे चलता है मुसलसल यूँही रस्ता मिरे आगे हम दो ही मुसाफ़िर हैं ख़िज़ाओं के हवा में इक मैं हूँ और इक ज़र्द वो पत्ता मिरे आगे सज्दे का मैं पाबंद हुआ हूँ यहाँ आ कर झुकता था वहाँ पर तो फ़रिश्ता मिरे आगे मैं ज़ेब रहा हूँ कभी यूसुफ़ के बदन पर क्या चीज़ भला दस्त-ए-ज़ुलेख़ा मिरे आगे इक हाथ में कश्कोल है दूजे में तराज़ू ऐसे में भला कौन ठहरता मिरे आगे जीने को तो कुछ और भी जी लें यहाँ लेकिन होना है यही खेल तमाशा मिरे आगे कुछ ऐसे भी सज्दों का शरफ़ है मुझे हासिल का'बा जो था पीछे वही का'बा मिरे आगे इक ख़ौफ़ था 'रुख़्सार' कि ग़ालिब की ज़मीं है थम थम के हर इक शे'र यूँ उतरा मिरे आगे