ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं हमारे रंग भी अब आसमाँ से मिलते हैं हमारे हाल की बोसीदगी पे मत जाओ ख़ज़ाने अब भी पुराने मकाँ से मिलते हैं तिरी क़सम का भी अब कैसे ए'तिबार करें तिरे यक़ीं तो हमारे गुमाँ से मिलते हैं वफ़ा ख़ुलूस मोहब्बत हमारा हिस्सा है हर एक शख़्स को ये सब कहाँ से मिलते हैं गले न हम को लगाएँ कि आप जल जाएँ हमारे ज़ख़्म भी बर्क़-ए-तपाँ से मिलते हैं