ज़मीं रौशन रहेगी आसमाँ रौशन रहेगा मिरी मौजूदगी से ये मकाँ रौशन रहेगा मयस्सर आ गई आसूदगी जब इस नगर को छतों पर रंग सेहनों में धुआँ रौशन रहेगा खुलेगी एक दिन सब पर हक़ीक़त आइने की तिलिस्म-ए-ख़्वाब से सारा जहाँ रौशन रहेगा उसे महफ़ूज़ रखने की निकालूँ कोई सूरत कि मेरे बा'द ये मंज़र कहाँ रौशन रहेगा किसी दिल में उतरने की उसे तकलीफ़ क्यूँ दें वो सब आँखों में बेनाम-ओ-निशाँ रौशन रहेगा मुझे क्या इल्म था मेरे मुक़द्दर का सितारा जहाँ तुम पाँव रक्खोगे वहाँ रौशन रहेगा हमारे दम से है ताबिंदगी इस क़ाफ़िले की न हम होंगे न मीर कारवाँ रौशन रहेगा बुझा सकता नहीं है कोई मेरे आइने को अंधेरे में भी ये आब-ए-रवाँ रौशन रहेगा खिलेगा नींद के सहरा में जो भी फूल 'साजिद' वरा-ए-लज़्ज़त-ए-वहम-ओ-गुमाँ रौशन रहेगा