क़स्र वीरान हुआ जाता है दिल परेशान हुआ जाता है हरम ओ दैर के जल्वों की क़सम कुफ़्र ईमान हुआ जाता है ताब-ए-नज़्ज़ारा इलाही तौबा जल्वा हैरान हुआ जाता है नाला आग़ोश-ए-असर तक आ कर ख़ुद पशेमान हुआ जाता है बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर पी के इंसान हुआ जाता है दिल है आमादा-ए-तकमील-ए-नशात ग़म का सामान हुआ जाता है कुछ नहीं हस्ती-ए-परवाना मगर बज़्म की जान हुआ जाता है अल्लाह अल्लाह कि उन्हीं का परतव उन पे क़ुर्बान हुआ जाता है हर वरक़ शरह-ए-मोहब्बत का 'शकील' अपना दीवान हुआ जाता है