ज़मीं से दूर रहे आसमाँ से दूर रहे जो तुम थे पास तो सारे जहाँ से दूर रहे जो अश्क-ए-ग़म मिज़ा-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ से दूर रहे फ़साना बन गए लफ़्ज़-ओ-बयाँ से दूर रहे वो क्या बताएँ बहारों की हश्र-सामानी जो ताइरान-ए-क़फ़स गुलिस्ताँ से दूर रहे सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत वो मीर-ए-मंज़िल हैं वही जो गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ से दूर रहे घटा सका न ज़माना दिलों की क़ुर्बत को तुम्हारे पास रहे आस्ताँ से दूर रहे वो दौर अस्ल में जान-ए-ग़ज़ल-सराई था वो दौर जिस में कि हम आशियाँ से दूर रहे नज़र से दूरी का 'एहसास' इतना ग़म तो न था मलाल ये है दिल-ए-दोस्ताँ से दूर रहे