ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे मैं जो फ़रियाद करूँ ग़ुल ठहरे नग़्मा-ए-कुन के करिश्मे देखो कहीं क़ुम क़ुम कहीं क़ुलक़ुल ठहरे जाल में कातिब-ए-आमाल फँसें दोश पर आ के जो काकुल ठहरे रात दिन रहती है गर्दिश उन को चाँद सूरज क़दह-ए-मुल ठहरे मेरा कहना तिरा सुनना मालूम जुम्बिश-ए-लब ही अगर गुल ठहरे जान कर भी वो न जानें मुझ को आरिफ़ाना ही तजाहुल ठहरे आशिक़ी में ये तनज़्ज़ुल कैसा आप हम क्यूँ गुल-ओ-बुलबुल ठहरे तुझ पे खुल जाए जो राज़-ए-हमा-ऊस्त फ़लसफ़ी दूर ओ तसलसुल ठहरे आँख से आँख में पैग़ाम आए गर निगाहों का तवस्सुल ठहरे खुल गई बे-हमगी बा-हमगी कुल मैं जब महव हुए कुल ठहरे दिल से दिल बात करे आँख से आँख आशिक़ी का जो तवस्सुल ठहरे क्यूँ न फ़िरदौस में जाए 'माइल' जब मोहम्मद का तवस्सुल ठहरे