जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे ऐसा शिकोह उस की सूरत में है कि नागह आवे जो सामने से दस्त-ए-मजाल बाँधे आँखों से गर करे वो ज़ुल्फ़ों को टुक इशारा आवें चले हज़ारों वहशी ग़ज़ाल बाँधे ईसा ओ ख़िज़्र तक भी पहुँचे अजल का मुज़्दा तू तेग़ अगर कमर पर बहर-ए-क़िताल बाँधे लाले की शाख़ हरगिज़ लहके न फिर चमन में गर सर पे सुर्ख़ चीरा वो नौनिहाल बाँधे लत आशिक़ी की कोई जाए है आशिक़ों से गो बादशाह डाँडे गो कोतवाल बाँधे हम किस तरह से देखें जब दे दे पेच लड़ के चीरे के पेचों में तो ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे बंदा हूँ मैं तो उस की आँखों की साहिरी का तार-ए-नज़र से जिस ने साहब-कमाल बाँधे हम एक बोसे के भी ममनूँ नहीं किसी के चाहे सो कोई तोहमत रोज़-ए-विसाल बाँधे सोज़-ए-दिल अपना उस को क्या 'मुसहफ़ी' सुनावें आगो ही वो फिरे है कानों से शाल बाँधे