तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं नजानूँ कौन से ज़हर-आब बीच पलियाँ हैं उधर सीं तुंद निगाहें इधर दिल-ए-नाज़ुक किधर के तीर की चोटें किधर कूँ चलियाँ हैं ख़याल-ए-ग़ुंचा-दहन में ज़-बस-कि जारी है हमारे अश्क की लड़ मोतिए की कलियाँ हैं ज़बान-ए-हाल सीं कहता है उन का नक़्श-ए-क़दम बहिश्त-ए-दीदा-ओ-दिल ख़ुश-क़दों की गलियाँ हैं न पूछ सर्व का उन क़ुमरियों कूँ ख़ाक-नशीं वो शोला-क़द के दुखों ऐ 'सिराज' जलियाँ हैं