जाना है उसी सम्त कि चारा नहीं कोई जिस सम्त को रस्ता भी निकलता नहीं कोई बस दिल का है सौदा कोई बाज़ी नहीं सर की थोड़ा सा है नुक़सान ज़ियादा नहीं कोई मंजधार में कश्ती का बदलना नहीं मंज़ूर ऐसी मुझे साहिल की तमन्ना नहीं कोई हर शख़्स यहाँ गुम्बद-ए-बे-दर की तरह है आवाज़ पे आवाज़ दो सुनता नहीं कोई हम सीना-सिपर आ गए मैदान-ए-विग़ा में अब क्यूँ सफ़-ए-आदा से निकलता नहीं कोई माना कि बुरा है जो कम-आमेज़ हूँ इतना ये तेरा तग़ाफ़ुल भी तो अच्छा नहीं कोई वो शोबदा-गर ही न रहा खेल हुआ ख़त्म होने को बस अब और तमाशा नहीं कोई इक नक़्द-ए-हुनर है कि नहीं जिस की कोई क़द्र पास इस के सिवा और असासा नहीं कोई पामाली-ए-गुलशन की ये तस्वीर है 'मोहसिन' शादाबी-ए-गुलशन का ये नक़्शा नहीं कोई