जाने इन आँखों में ये कैसा नशा रखा है जिस ने देखा उसे बदमस्त बना रखा है तुम पिलाओगे तो पी लेंगे हमें क्या इस से ज़हर है जाम में या आब-ए-बक़ा रखा है हम-नशीनी से तुम्हारी है बहार-ए-हस्ती इन शब-ओ-रोज़ में तुम ही कहो क्या रखा है इस तरह आने से बेहतर था न आते साहब चंद लम्हों की मुलाक़ात में क्या रखा है मौसमों की तरह बदला किए वो पर हम ने ख़ुद को हर हाल में पाबंद-ए-वफ़ा रखा है आप का बज़्म-ए-तसव्वुर में चले आ जाना हम को माहौल से बेगाना बना रखा है शे'र अपने नहीं मम्नून किसी के 'नजमी' हम ने ब-फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा ज़ेहन-ए-रसा रखा है