जंग जारी है ख़ानदानों में ग़ैर महफ़ूज़ हूँ मकानों में लफ़्ज़ पथरा गए हैं होंटों पर लोग क्या कह गए हैं कानों में रात घर में थी सर-फिरी आँधी सिर्फ़ काँटे हैं फूलदानों में माबदों की ख़बर नहीं मुझ को ख़ैरियत है शराब-ख़ानों में अब सिपर ढूँड कोई अपने लिए तीर कम रह गए कमानों में नाख़ुदा क्या ख़ुदा रखे महफ़ूज़ वो हवाएँ हैं बादबानों में दाल चुनने में हाथ आएँगे जितने कंकर हैं कार-ख़ानों में ढूँडता फिर रहा हूँ ख़ाली हाथ जाने क्या चीज़ उन दुकानों में