जंगल पहाड़ खेत भी भाते नहीं मुझे अपनी नज़र से तुम जो दिखाते नहीं मुझे मैं रस्म रह गया हूँ फ़क़त और कुछ नहीं इस पर भी मेरे लोग निभाते नहीं मुझे दो दिन मिले बग़ैर भी जिस से सुकूँ न था हाए अब उस के ख़्वाब तक आते नहीं मुझे ये ज़िंदगी है ख़्वाब बुरा ख़्वाब ज़िंदगी क्यों नींद से ख़ुदाया जगाते नहीं मुझे ग़म हैं मुझे तो ख़ैर मुझे ये सुकून है ये ग़म अकेले छोड़ के जाते नहीं मुझे