जानिब-ए-कूचा-ओ-बाज़ार न देखा जाए ग़ौर से शहर का किरदार न देखा जाए खिड़कियाँ बंद करें छुप के घरों में बैठें क्या समाँ है पस-ए-दीवार न देखा जाए सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए शहर का शहर गुनहगार तो हो सकता है जब कहीं कोई गुनहगार न देखा जाए दश्त से कम नहीं वीराँ कोई बस्ती 'मख़मूर' ये हुजूम-ए-दर-ओ-दीवार न देखा जाए