ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था ज़िंदगी का ज़हर वर्ना इस क़दर कड़वा न था उस ने तन्हाई से घबरा कर पुकारा तो नहीं इस से पहले तो मिरा दिल इस तरह धड़का न था हाए वो आलम कि उन की बज़्म में भी बैठ कर मैं यही सोचा किया मैं तो कभी तन्हा न था उस के अपने हाथ रुख़्सारों को सहलाने लगे गो ब-ज़ाहिर मेरी बाबत उस ने कुछ सोचा न था हर तरफ़ खिलती रहीं कलियाँ नसीम-ए-सुब्ह से अपनी क़िस्मत में सबा का एक भी झोंका न था ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!! आ दो घड़ी मिल कर रहें तुझ से मेरा उम्र-भर का तो कोई झगड़ा न था सोचते हैं अब उसे 'आज़ाद' हम क्या नाम दें उम्र का वो दौर दिल में जब कोई सौदा न था