ज़ंजीर ने की जुम्बिश वहशत ने ली अंगड़ाई शायद कि बहार आई शायद कि बहार आई यक-रंगी-ओ-यकसूई यकजिहती-ओ-यकजाई कहते हैं जुनूँ जिस को है अस्ल में दानाई इतना तो बता ऐ दिल ये कौन सी मंज़िल है अब ख़ुद ही तमाशा हूँ और ख़ुद ही तमाशाई दीवाना हूँ मैं बे-शक दीवाना मगर किस का पूछे तो कोई उन से ये किस की है रुस्वाई मुमकिन जो नहीं तेरा दुनिया में हमें मिलना महशर ही में मिल लेंगे तुझ से तिरे शैदाई ये साक़ी-ए-महविश है वो जाम-ए-मय-ए-रंगीं है और कहाँ जन्नत जन्नत के तमन्नाई बे-वज्ह से तस्कीं है क्यूँ आज 'सहर' मुझ को कौन आया है घर मेरे वो हैं कि क़ज़ा आई