जन्नत नहीं तो कू-ए-बुताँ कुछ न कुछ तो हो तस्कीन-ए-दिल को अपनी यहाँ कुछ न कुछ तो हो आँखों में अश्क लब पे फ़ुग़ाँ कुछ न कुछ तो हो राज़ उस पे दर्द-ए-दिल का अयाँ कुछ न कुछ तो हो ओ बे-नियाज़ एक उचटती हुई नज़र दिल को भी ज़िंदगी का गुमाँ कुछ न कुछ तो हो चश्म-ए-करम नहीं न सही ज़हर ही सही लेकिन इलाज-ए-दर्द-ए-निहाँ कुछ न कुछ तो हो एहसास-ए-ज़िंदगी के लिए इस जहान में फ़िक्र-ए-जहाँ कि इश्क़-ए-बुताँ कुछ न कुछ तो हो कुछ दिल की धड़कनों का मुदावा भी चाहिए दस्त-ए-सुबुक कि संग-ए-गिराँ कुछ न कुछ तो हो ऐ 'शौक़' बे-सबब तो ग़ज़ल-ख़्वानियाँ नहीं तुम भी क़तील-ए-चश्म-ए-बुताँ कुछ न कुछ तो हो