किसी की चश्म-ए-सादा याद आई हरीफ़-ए-जाम-ओ-बादा याद आई हुई हर आफ़ियत मदफ़ून जिस में वो दीवार-ए-फ़तादा याद आई सवाद-ए-दैर-ओ-का'बा में पहुँच कर तिरी महफ़िल ज़ियादा याद आई किसी को बे-तमन्ना भूल बैठे किसी की बे-इरादा याद आई ज़माने से हुआ दिल तंग जब भी वो आग़ोश-ए-कुशादा याद आई कभी तुझ को भी ऐ सोहबत फ़रामोश बहार-ए-जान-दादा याद आई जो मंज़िल छोड़ कर आए हैं 'शौकत' वही जादा-ब-जादा याद आई