जनता को सब्ज़-बाग़ दिखाएँगे मिल के हम हर इक को बेवक़ूफ़ बनाएँगे मिल के हम तुम देखना सबक़ जो सिखाएँगे मिल के हम भारत को अपने नर्क बनाएँगे मिल के हम भरते रहेंगे अपने घरों की तिजोरियाँ कंगाल इस वतन को बनाएँगे मिल के हम रहने न देंगे धरती को हरगिज़ हरी-भरी जो भी बचे हैं पेड़ कटाएँगे मिल के हम इंसान क्या है देख के शैतान काँप उठे भारत में ऐसी धूम मचाएँगे मिल के हम तारीख़ अपने आप को दोहराएगी ज़रूर वो दिन भी सब को जल्द दिखाएँगे मिल के हम फिर कोई भी बुझा न सकेगा जिसे कभी दुनिया में ऐसी आग लगाएँगे मिल के हम ली थी शपत तो दिल में किया था ये अह्द भी दंगे फ़साद ख़ूब कराएँगे मिल के हम