ज़ोर यूँ दर्द का कम होने लगा आख़िर-ए-शब जिस तरह टूटने लगता है नशा आख़िर-ए-शब बे-सबब ही तो मिरी आँख नहीं खुल सकती किस ने भूले से मुझे याद किया आख़िर-ए-शब शायद आ पहुँचे हैं नज़दीक सफ़ीरान-ए-सहर कोई देता है दर-दिल पे सदा आख़िर-ए-शब जाँ-निसारी में पतंगों ने कमी क्या की थी शम्अ' ने किस लिए दम तोड़ दिया आख़िर-ए-शब आप के पाँव की आहट का गुमाँ होता है घर के आँगन में जब आती है सबा आख़िर-ए-शब किस के अश्कों का ख़ुदा जाने असर है 'राही' भीगी भीगी सी जो रहती है फ़ज़ा आख़िर-ए-शब