अगर लिखना मनअ' है तो क़लम का कार-ख़ाना क्यों अगर पढ़ना मनअ' है तो यहाँ काग़ज़ बनाना क्यों इसी दुनिया में बेहतर इक नई दुनिया बसाने को यहाँ तक आ गए हैं तो यहाँ से लौट जाना क्यों वहाँ ले कर ही क्यों आया जहाँ फिसलन ही फिसलन है ये जनता ही नहीं समझी तू राजा है तो माना क्यों कई बरसों से इस पर ही बहस जारी है संसद में जो भेजा एक रुपया था तो पहुँचा एक आना क्यों तुम्हें गर आसमाँ की सैर करनी थी तो कर लेते कहीं पर बाढ़-सूखे का ही हर दम यूँ बहाना क्यों अगर जंगल को फिर से एक दिन जंगल बनाना था यहाँ आ कर शहर में फिर बनाया आशियाना क्यों