ज़रा सी देर जो ख़ौफ़-ए-दवाम ख़त्म हुआ ये मत समझ कि ये हू का मक़ाम ख़त्म हुआ कहाँ गया जरस-ए-कर्बला बुला के मुझे कि रास्ते में मिरा घर तमाम ख़त्म हुआ न तेरी प्यास ने दरियाओं से ही बैअ'त की न पानियों पे लिखा तेरा नाम ख़त्म हुआ दरख़्त सारे समेटे हुए हैं शाख़-ए-ख़ुलूस चलो कि पहले सफ़र का क़याम ख़त्म हुआ चुनेगा सोख़्ता ख़ेमों की राख और कोई लगा के आग हवा का तो काम ख़त्म हुआ सर-ए-उफ़ुक़ कोई तारा न बे-नवा कोई चीख़ ये किन तबाहियों पे रंज-ए-शाम ख़त्म हुआ