ज़रा सोज़-ए-दिल बज़्म का साज़ देना कि ख़ुद बोलना है ख़ुद आवाज़ देना अजब ज़ौक़-ए-पिन्हाँ है रंग-ए-तपिश में तसल्ली न ऐ शोख़-अंदाज़ देना कभी ढूँढना गो शहा-ए-हरम में कभी दैर में जा के आवाज़ देना गुलों के हैं आग़ोश वा बहर-ए-रुख़्सत ज़रा बढ़ के बुलबुल को आवाज़ देना न ले मेरा ईमान ऐ बे-नियाज़ी कि है नज़्र जल्वा-गह-ए-नाज़ देना ख़याबाँ ख़याबाँ में पैहम तजस्सुस बयाबाँ बयाबाँ में आवाज़ देना उधर मेरी तौबा की ढारस बंधाना अधर मुझ को साग़र ब-सद-नाज़ देना है गुम-कर्दा राह-ए-मोहब्बत में 'साक़िब' ज़रा मुड़ के फिर उस को आवाज़ देना