जरस-ए-दिल की सदा बन के चले तू अगर राह-नुमा बन के चले मोर-ए-बे-माया की रफ़्तार चलूँ तू अगर आबला-पा बन के चले आरज़ू है कि बनूँ मैं दरिया और तू मुझ पे हवा बन के चले ऐसे गुलशन में गुज़ारूँ कोई शब तू जहाँ बाद-ए-सबा बन के चले मैं रहूँ दश्त में जा कर और तू चाँदनी-शब में बला बन के चले अक़्ल-ओ-दानिश तिरे क़दमों पे निसार तू अगर होश-रुबा बन के चले