ज़र्फ़-ए-कोहना गला दिया जाए रूप उस को नया दिया जाए अपनी अग्नी में वो जले न मज़ीद शम्स को ये बता दिया जाए पूछना क्या है बूढे अम्बर से उस के यद में असा दिया जाए अपनी अपनी हुदूद ही में रहें बहर-ओ-बर को बता दिया जाए इन से फूलों को ईर्खा होगी तितलियों को उड़ा दिया जाए सूना सूना है जो भी सहन वहाँ पेड़ तन का लगा दिया जाए महवशों की जो फ़स्ल लेनी है अर्ज़ पर मह उगा दिया जाए अर्ज़ के वास्ते ये अच्छा है बीच में नभ हटा दिया जाए सुब्ह हो जब तो माहताब को क्या लोरी दे कर सुला दिया जाए इन को लम्हों में बाँटना है अभी साअ'तों को बढ़ा दिया जाए ज़िंदगी है अगर सराब 'फ़िगार' जग को सहरा बना दिया जाए