ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए बू तअस्सुब की हर इक दिल से निकाली जाए अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए आप ख़ुश हो के अगर हम को इजाज़त दे दें आप के नाम से इक बज़्म सजा ली जाए हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है अब क़लम छोड़ के तलवार उठा ली जाए सोच कर अर्ज़-ए-तलब वक़्त के सुल्तान से कर माँगने वाले तिरी बात न ख़ाली जाए