जश्न-ए-ग़म-ए-हयात मनाने नहीं दिया इस मुफ़्लिसी ने ज़हर भी खाने नहीं दिया हम ने जो सादा-लौही में खाया कोई फ़रेब फिर वो फ़रेब औरों को खाने नहीं दिया आँधी ने रौशनी की हिमायत तो की बहुत लेकिन कोई चराग़ जलाने नहीं दिया इक-आध घर तो जल गया पर शहर बच गया अब के दिए का साथ हवा ने नहीं दिया राज़ी था मैं भी और मिरा दुश्मन भी सुल्ह पर कुछ दोस्तों ने हाथ मिलाने नहीं दिया