जश्न-ए-हयात हो चुका जश्न-ए-ममात और है एक बरात आ चुकी एक बरात और है इश्क़ की इक ज़बान पर लाख तरह की बंदिशें आप तो जो कहें बजा आप की बात और है पीने को इस जहान में कौन सी मय नहीं मगर इश्क़ जो बाँटता है वो आब-ए-हयात और है ज़ुल्मत-ए-वक़्त से कहो हसरत-ए-दिल निकाल ले ज़ुल्मत-ए-वक़्त के लिए आज की रात और है उन को 'शमीम' किस तरह नामा-ए-आरज़ू लिखें लिखने की बात और है कहने की बात और है