जस्ता जस्ता मौज-ए-तूफ़ानी में था अक्स उस का हम-सफ़र पानी में था क्या ये मस्जूद-ए-मलाइक है वही ख़ालिक़-ए-कौनैन हैरानी में था तेग़ पर जिस के था सूरज का लहू शाम को वो मर्सिया-ख़्वानी में था रुख़ पे ज़ुल्फ़ों की घटा छाई हुई चाँद गोया नीम उर्यानी में था तीरगी थी बस चराग़ों के तले और गिर्द-ओ-पेश ताबानी में था जान अपनी नज़र की जिस दोस्त पर वो भी 'हैदर' दुश्मन-ए-जानी में था