ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार मुझे तेरी आँखों ने किया आप सा बीमार मुझे दिल बुझा जाए है अग़्यार की शोरिश पे मिरा सर्द करती है तिरी गर्मी-ए-बाज़ार मुझे अक़्ल ही मौजिब-ए-तकलीफ़ हुई है नादाँ कर गई बे-ख़बरी आ के ख़बर-दार मुझे तख़्त और चित्र सलातीं को मुबारक होवे बस है कूचे में तिरे साया-ए-दीवार मुझे जूँ मिसाल उस की नुमूदार हुई तूँ ही 'बयाँ' तपिश-ए-दिल ने किया ख़्वाब से बेदार मुझे