ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा ले के हम-राह मह-ए-दाग़-ए-जिगर जाऊँगा आरिज़-ए-गुल हूँ न मैं दीदा-ए-बुलबुल गुलचीं एक झोंका हूँ फ़क़त सन से गुज़र जाऊँगा ऐ फ़ना टूट सकेगी न कभी कश्ती-ए-उम्र मैं किसी और समुंदर में उतर जाऊँगा देख जी भर के मगर तोड़ न मुझ को गुलचीं हाथ भी तू ने लगाया तो बिखर जाऊँगा एक क़तरा हूँ मगर सैल-ए-मोहब्बत से तिरे हो सके जो न समुंदर से भी कर जाऊँगा दूर गुलशन से किसी दश्त में ले जा सय्याद हम-सफ़ीरों के तरानों में तो मर जाऊँगा सेहन-ए-गुलशन में कई दाम बिछे हैं ऐ 'असर' उड़ के जाऊँ भी अगर मैं तो किधर जाऊँगा