ज़ुल्म पर भी जो सनम हर दम हो क्यों न फिर उस का सितम हर दम हो दर्द बरपा करे मुझ पर हर वक़्त बस मिरा हाथ क़लम हर दम हो उस से हर वक़्त मैं ख़ुश रहता हूँ ये भरम है तो भरम हर दम हो राह पथरीली सही बस कोई याँ मिलाने को क़दम हर दम हो रहता हर पल है किसी बुत का ख़याल दिल मोहब्बत में बे-दम हर दम हो