न जाने निकले बड़े लोग हैं कहाँ की तरफ़ ज़मीं की बात है और आँख आसमाँ की तरफ़ जहान वाले सभी थक गए फ़लक तकते ख़ुदा कभी तू भी तो देखा कर जहाँ की तरफ़ मरे बग़ैर मिरा बेबसी से मरना हो जाए चला है तीर किसी का मिरी कमाँ की तरफ़ तुझे हिसाब दे दूँ तू ने कितना क़त्ल किया फ़रिश्ता बन के चले आ कभी यहाँ की तरफ़ है नाज़ुकी ने भी तलवार तान दी 'वत्सल' ये लफ़्ज़-ए-इश्क़ चला आया जो ज़बाँ की तरफ़