जौर-ए-ज़मीं न था सितम-ए-आसमाँ न था वो भी था वक़्त जब कि ग़म-ए-दो-जहाँ न था कोई भी लुत्फ़-ए-ज़ीस्त तह-ए-आसमाँ न था दुनिया मिरी ख़राब थी तू मेहरबाँ न था सुनता ये कौन ज़ब्त पे क़ाबू नहीं है अब अच्छा हुआ जो कोई मिरा राज़-दाँ न था दीवानगी ने बात बना दी कि उस से मैं ज़िद कर रहा हूँ अब कि ये मेरा बयाँ न था बदनाम ख़ुद हुए हो ज़बाँ से निकाल कर मेरा सिवा तुम्हारे कोई राज़-दाँ न था सज्दों की दाद मिल गई बाब-ए-क़ुबूल से माना नज़र के सामने वो आस्ताँ न था मायूसी-ए-नज़र के मनाज़िर हैं ख़ौफ़नाक फिर आप ही कहेंगे मुझे ये गुमाँ न था वो मेरे सामने थे मैं था उन के सामने जब तक कि मेरा राज़ किसी पर अयाँ न था लिल्लाह हम से क़िस्सा-ए-'आलिम' न पूछिए सुनते हैं लाश पर कोई भी नौहा-ख़्वाँ न था