दुआ तासीर से आरी वज़ाइफ़ राएगाँ या'नी अमल रद्द-ए-बला के हो गए सारे धुआँ या'नी हक़ीक़त क्या है इस की कौन जाने कौन बतलाए रहा है ज़िंदगी का हम-सफ़र पैहम गुमाँ या'नी बदलते जा रहे हैं ज़ाविए सूरज की नज़रों के ज़मीं नाराज़ लगती है ख़फ़ा है आसमाँ या'नी जो देखोगे तो लगता है सराब-ए-दश्त भी दरिया जो सोचो तुम अगर तो ख़्वाब सा है ये जहाँ या'नी चलो अंजाम को आग़ाज़ के नुक़्ते पे ले आएँ बिछड़ते हैं वहीं चल कर मिले थे हम जहाँ या'नी जहान-ए-रंग-ओ-बू की बस हक़ीक़त और क्या होगी गुज़रगाह-ए-ज़माना का है शायद ये निशाँ या'नी है बस इतना फ़क़त हम आप को मसरूफ़ रखते हैं वगर्ना शाइरी 'जावेद' है कार-ए-ज़ियाँ या'नी