रात में आफ़्ताब ना-मुम्किन या'नी ताबीर-ए-ख़्वाब ना-मुम्किन प्यार की बस्तियाँ बसा कर ख़ुद दिल हो ख़ाना-ख़राब ना-मुम्किन रंज-ओ-ग़म ज़िंदगी की सच्चाई ज़िंदगी इक सराब ना-मुम्किन मुझ से आईना कल ये कहता था तुम और आली-जनाब ना-मुम्किन ये अलग बात थोड़ा तल्ख़ सही वर्ना सच का जवाब ना-मुम्किन हो क़लम-ज़ाद आइने की तरह कोई ऐसी किताब ना-मुम्किन ऐ 'जमील' उस के बा'द दुनिया में हो कोई ला-जवाब ना-मुम्किन