जावेदाँ ग़म अह्द-ए-इशरत तेज़-पा जाने क्या है ज़िंदगी का मुद्दआ' उठ रहे हैं दम-ब-दम तूफ़ान-ए-ग़म एक दिल है मैं हूँ और मेरा ख़ुदा है ग़म-ए-दिल मंज़िल-ए-आग़ाज़ में देखिए होता है अब अंजाम क्या हाल-ए-दिल पर आप क्यों हैं नौहागर मैं ने पाई है मोहब्बत की सज़ा डूबती है मेरी कश्ती डूब जाए कौन हो मिन्नत-पज़ीर-ए-नाख़ुदा आप भी आख़िर न मेरे हो सके और अब किस से हो उम्मीद-ए-वफ़ा 'होश' मैं ना-आश्ना-ए-इंतिक़ाम अपने दुश्मन को भी देता हूँ दुआ