ज़ाविए फ़िक्र के अब और बनाओ यारो बात काग़ज़ पे नए ढंग से लाओ यारो कर दिए सर्द मसर्रत की घटा ने जज़्बात रूह को ग़म की ज़रा धूप दिखाओ यारो जंग अख़्लाक़-ओ-मोहब्बत से भी हो सकती है अपने दुश्मन पे न तलवार उठाओ यारो जिस को हर क़ौम की तहज़ीब गवारा कर ले ऐसा दस्तूर कोई सामने लाओ यारो इंतिहा नूर की आँखों में न ज़ुल्मत भर दे रौशनी हद से ज़ियादा न बढ़ाओ यारो मेरा मक़्सद है मुलाक़ात ग़रज़ कुछ भी नहीं मुझ को उतरे हुए चेहरे न दिखाओ यारो मंज़िलें ज़ेर-ए-क़दम जल्द सिमट आएँगी जज़्बा-ए-'शौक' ज़रा और बढ़ाओ यारो