हाथ उठाता हूँ मैं अब दुआ के लिए तुम भी आमीन कहना ख़ुदा के लिए मुझ को इस नीम-जाँ दिल पे हैरत है जो ज़िंदगी चाहता है ख़ता के लिए आफ़तें जिस क़दर हो सकीं बख़्श दो वक़्फ़ है दिल मिरा हर बला के लिए मुझ तक आने में ज़हमत न हो लाओ मैं राह हमवार कर दूँ क़ज़ा के लिए नक़्ल-ए-फ़रियाद से मेरी क्या फ़ाएदा कुछ असर भी हो दिल की सदा के लिए इब्तिदा ग़म की जब बन गई ज़िंदगी मुझ को मरना पड़ा इंतिहा के लिए 'शौक़' उन के सितम की लताफ़त न पूछ दिल तड़पता है अब तक जफ़ा के लिए