ज़वाल-ए-फ़िक्र को ज़ेहनों की तीरगी कहते जो बात हम ने कही है वो आप भी कहते फ़राज़-ए-दार प रूदाद-ए-ज़िंदगी कहते ख़ुदा-शनास जो होते तो वाक़ई कहते तरस रहे हैं जो राहत की ज़िंदगी के लिए वो कैसे ग़म को मसर्रत की ज़िंदगी कहते अब ऐसे लोग ज़माने से उठ गए शायद तुम्हारे ग़म को जो सरमाया-ए-ख़ुशी कहते ये फ़िक्र-ए-नौ के पुजारी ये रौशनी के अमीं जो रौशनी कहीं होती तो रौशनी कहते बहुत तलाश किया हम ने शहर-ए-ग़म में मगर मिला न कोई जो रूदाद-ए-ज़िंदगी कहते जो काम अहल-ए-जुनूँ ने किया ब-नाम-ए-वफ़ा शुऊ'र-मँद उसे रूह-ए-आगही कहते जो कम-नज़र थे अक़ीदत को देते कुफ़्र का नाम वफ़ा-परस्त अक़ीदत को बंदगी कहते ये अहल-ए-फ़िक्र ये फ़न-कार दौर-ए-हाज़िर के ग़ज़ल के नाम से दुनिया की बात भी कहते मिरे जुनूँ के तक़ाज़े अगर समझ लेते मिरी ख़ुदी को वो मे'राज-ए-बे-ख़ुदी कहते 'निगार' काश ये ऐश-ओ-तरब के दीवाने सितम-ज़दों की कहानी कभी कभी कहते