ये मान लो कि ग़म है ज़रूरी ख़ुशी के बाद इक तीरगी का दौर है इस रौशनी के बाद ऐ दिल ये इज़्तिराब तिरे काम आएगा मिल जाएगा सुकून तुझे बेकली के बाद जब तब्सिरा करें वो मिरे वाक़िआ'त पर दीवानगी की बात छिड़े आगही के बाद दुनिया सँवारनी है तो उक़्बा की फ़िक्र कर इक और ज़िंदगी भी है इस ज़िंदगी के बाद आबाद हो सकेगा न साक़ी किसी तरह मय-ख़ाना-ए-हयात मिरी मय-कशी के बाद होश-ओ-ख़िरद के साथ न दीवानगी चली पैग़ाम बे-ख़ुदी का मिला है ख़ुदी के बाद दैर-ओ-हरम के राज़ से वाक़िफ़ न था बशर इरफ़ान बंदगी का हुआ बंदगी के बाद दिल ज़िंदगी के नाम से बेज़ार हो गया ऐ जान-ए-काएनात तिरी बे-रुख़ी के बाद ये बज़्म-ए-रंग-ओ-बू है जो हम से सजी हुई लुट जाएगी ये बज़्म घड़ी दो घड़ी के बाद तुम मरकज़-ए-ख़याल हो तुम मरकज़-ए-निगाह कोई गली नहीं है तुम्हारी गली के बाद तर्क-ए-तअल्लुक़ात से ज़ाहिर हुआ 'निगार' बनती है दुश्मनी की फ़ज़ा दोस्ती के बाद