ज़वाल-ए-उम्र के पर्दे में है हिजाब कहाँ वुफ़ूर-ए-शौक़ से लबरेज़ अब गुलाब कहाँ किरन किरन से फ़साना हसीन लिखता था चला गया वो फ़ुसूँ कार-ए-आफ़ताब कहाँ नुमूद-ए-सुब्ह को देता सदा चला आए हमारी रात में बाक़ी है ऐसा ख़्वाब कहाँ हर इक क़दम पे ख़िरद के निशान मिलते हैं तुझे छुपा के मैं रक्खूँ दिल-ए-ख़राब कहाँ सुनहरे वक़्त में रेग-ए-रवाँ ये फूल खिला वो क़िस्सा प्यार का ले कर गए हैं ख़्वाब कहाँ सियह सफ़ेद घटा आसमाँ पे फैली थी पर उस के जाल में आया वो माहताब कहाँ तग़य्युरात ज़माने के उस ने बतलाए मिरे सवाल के हक़ में था वो जवाब कहाँ तलाश ख़्वाब में मेरे क़दम वो लेता था ज़बाँ पे उस की है अब आप और जनाब कहाँ सदा-ए-दर्द से वाक़िफ़ दिल-ए-नफ़स 'जाफ़र' कोई बताए कि होता है दस्तियाब कहाँ