मोहब्बत में दिल-सख़्तियाँ और भी हैं उठाने को संग-ए-गिराँ और भी हैं धुआँ मेरी आहों का छाया हुआ है तह-ए-आसमाँ आसमाँ और भी हैं सताना जलाना ही आता है तुम को सिवा इस के कुछ ख़ूबियाँ और भी हैं मिरे दिल को ले कर न पामाल कीजिए कि इस जिंस के क़द्र-दाँ और भी हैं अभी तो फ़क़त हिज्र में दिल मिटा है मगर ख़ाना-वीरानियाँ और भी हैं तिरा जिन पे लुत्फ़-ओ-करम है ज़ियादा वो सरगर्म-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं 'रशीद' एक जादू रक़म हैं तो क्या है तलामीज़-ए-'महमूद' ख़ाँ और भी हैं