जज़्बा-ए-इश्क़ में तासीर भी हो सकती है हुस्न के पानों में ज़ंजीर भी हो सकती है मुझ को तस्लीम है क़िस्मत का लिखा भी लेकिन कार-फ़रमा कोई तदबीर भी हो सकती है किसी मज़लूम की इक आह ब-अंदाज़-ए-जुनूँ वक़्त के हाथ में शमशीर भी हो सकती है ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा अभी ख़ाम है अपना 'ज़मज़म' हर नज़र हासिल-ए-तनवीर भी हो सकती है