जज़्बा-ए-शौक़ को बेदार करूँ या न करूँ तू बता दे मैं तुझे प्यार करूँ या न करूँ हसरतों को गुल-ओ-गुलज़ार करूँ या न करूँ तेरे जलवों का मैं दीदार करूँ या न करूँ मैं जलाऊँ न जलाऊँ तिरी यादों के चराग़ दिल की बस्ती को पुर-अनवार करूँ या न करूँ जिस की शिद्दत से तड़पने में मज़ा आता है दिल को उस दर्द से दो-चार करूँ या न करूँ मेरे दिल तू ही बता सोच समझ कर मुझ को अपनी चाहत का मैं इज़हार करूँ या न करूँ