झाँक कर रौज़न-ए-दीवार के बाहर देखो By Ghazal << कहाँ सुकून है दुनिया में ... हर सदी में क़िस्सा-ए-मंसू... >> झाँक कर रौज़न-ए-दीवार के बाहर देखो घर से निकलो कभी दुनिया का भी मंज़र देखो तुम जो हर शख़्स पे तन्क़ीद किया करते हो कभी ख़ुद अपने गरेबान के अंदर देखो अब तो अपनों ने भी मुँह मोड़ लिया है हम से कितना बिगड़ा है 'जमाल' अपना मुक़द्दर देखो Share on: