झुक सके आप का ये सर तो झुका कर देखें राह में दिल है कि पत्थर है उठा कर देखें ये भी इक शर्त है तकमील-ए-हिकायत के लिए हाल-ओ-मुस्तक़बिल-ओ-माज़ी को मिला कर देखें आबरू हुस्न की हो जाए न पामाल-ए-नज़र देखना हो तो उठें ख़ुद से छुपा कर देखें ग़ैरत-ए-ज़ोहरा-वशाँ रश्क-ए-क़मर हैं कि नहीं आओ इन ख़ाक के ज़र्रों को उठा कर देखें अब नहीं मिलने के दुनिया में वो ख़ासान-ए-जुनूँ लाख हम अहल-ए-ख़िरद शम्अ' जला कर देखें उन हिजाबों को जो मानूस-ए-अज़ल हैं अब तक आओ फ़ितरत की निगाहों में समा कर देखें ख़ुद ही खुल जाएगा अरबाब-ए-गुलिस्ताँ का भरम छेड़ कर गुल को तो ग़ुंचों को हँसा कर देखें ज़िंदगी दर्द सरापा ही नहीं प्यार भी है आओ इस प्यार को नग़्मों में सजा कर देखें क्या अता होती है क्या अज्र-ओ-सिला मिलता है ऐ 'रज़ा' दस्त-ए-तलब हम भी बढ़ा कर देखें